रेकी का इतिहास
अगर हम रेकी के इतिहास की चर्चा करते है तो लगभग 20वीं सदी की शुरुआत में ये जापान में शुरू हुआ था। रेकी की खोज डॉ. मिकाओ उसुई (Mikao Usui) ने की थी। डॉ. उसुई एक बौद्ध भिक्षु थे जिन्होंने प्राचीन चिकित्सा विधियों और ऊर्जा चिकित्सा की खोज में भारत आकर उन्हे भगवान बुद्ध की किताब “कमल सूत्र” का अध्यन करने का मौका मिला, जिसमे ये बताया गया था कि किसी ब्यक्ति को छूकर उपचार कैसे करे। इस किताब का गहरा अध्यन करने बाद रेकी पद्धति को विकसित किया।
रेकी के इतिहास के कुछ प्रमुख पडाव ऐसे थे:
- प्रारंभिक जीवन और खोज: डॉ. मिकाओ उसुई का जन्म 15 अगस्त 1865 को जापान के तेनई में हुआ था। उन्होंने विभिन्न धर्मों और चिकित्सा पद्धतियों का अध्ययन किया। उनकी खोज के दौरान, वे एक आध्यात्मिक साधना पर चले गए, जिसमें उन्होंने प्राचीन तिब्बती सूत्रों का अध्ययन किया और उन्हें एक विशेष चिकित्सा विधि की जानकारी मिली।
- साधना और साक्षात्कार: 1922 में, डॉ. उसुई ने एक आध्यात्मिक साधना (कुरामा पर्वत पर 21 दिनों का उपवास और ध्यान) की, जिसके दौरान उन्हें रेकी ऊर्जा का अनुभव हुआ। यह अनुभव उनके लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ था और उन्होंने इसे ‘रेकी’ नाम दिया।
- रेकी की स्थापना और प्रचार: डॉ. उसुई ने टोक्यो में एक रेकी क्लिनिक और स्कूल की स्थापना की, जहां उन्होंने इस विधि को सिखाना शुरू किया। उन्होंने अपने जीवन के शेष समय में हजारों लोगों का उपचार किया और कई छात्रों को प्रशिक्षण दिया।
- हयाशी सेंसई और रेकी का विकास: डॉ. उसुई के प्रमुख शिष्यों में से एक डॉ. चूजीरो हयाशी (Chujiro Hayashi) थे। उन्होंने रेकी को और अधिक संरचित और संगठित किया। हयाशी सेंसई ने कई लोगों को रेकी में प्रशिक्षित किया और इसे जापान के बाहर भी फैलाने में मदद की।
- हवायो ताकाता और पश्चिमी दुनिया में रेकी: हवायो ताकाता (Hawayo Takata) एक जापानी-अमेरिकी महिला थीं जिन्होंने हयाशी सेंसई से रेकी सीखा। उन्होंने इसे संयुक्त राज्य अमेरिका में फैलाया और 1970 के दशक में रेकी को पश्चिमी दुनिया में लोकप्रिय बनाया। उनकी मेहनत और प्रशिक्षण के कारण रेकी आज एक वैश्विक उपचार पद्धति बन चुकी है।
रेकी का इतिहास एक सरल लेकिन प्रभावशाली यात्रा है, इसमे विश्व भर के लाखों लोगों ने शारीरिक, मानसिक और आत्मिक से लाभ प्राप्त किया।