स्वर शास्त्र (शिव स्वरोदय)
भारतीय योग मे स्वर शास्त्र या “शिव स्वरोदय” तंत्र साहित्य का एक महत्वपूर्ण भाग है, जो श्वास (सांस) की गति और स्वर (नासिका से निकलने वाली ध्वनि) पर आधारित है। इसे नाड़ी विज्ञान भी कहा जाता है। शिव स्वरोदय एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है जो भगवान शिव और देवी पार्वती के बीच हुए संवाद पर आधारित है। स्वास की गति को अनुभव कर अलग अलग तरह की भविष्यवाणियां की जाती रही है। स्वर शास्त्र मे कहा गया है जिसने भी “श्वास” की गति को पहचान लिया, भविष्य अपने आप समझ मे आ जायेगा.
शिव स्वरोदय: भगवान शिव और देवी पार्वती के बीच संवाद
शिव स्वरोदय में भगवान शिव, माता पार्वती को स्वर विज्ञान के रहस्यों की जानकारी देते हैं। यही संवाद स्वरोदय तंत्र के रूप में जाना जाता है और इसमें तीन प्रमुख स्वरों के बारे मे बताया गया है: इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना।
इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ियाँ:
- इड़ा नाड़ी: यह बाईं नासिका से संबंधित है और इसे चंद्र स्वर भी कहा जाता है। यह नाड़ी ठंडी, शीतल और मानसिक शांति प्रदान करती है। इड़ा नाड़ी का सक्रिय होना शांति, विश्राम और ध्यान के लिए उपयुक्त माना जाता है।
- पिंगला नाड़ी: यह दाईं नासिका से संबंधित है और इसे सूर्य स्वर भी कहा जाता है। यह नाड़ी गर्म, ऊर्जावान और सक्रियता प्रदान करती है। पिंगला नाड़ी का सक्रिय होना कार्य, शारीरिक गतिविधियों और उर्जा के लिए उपयुक्त माना जाता है।
- सुषुम्ना नाड़ी: यह नाड़ी मध्य में स्थित है और जब दोनों नासिकाएँ समान रूप से सक्रिय होती हैं, तब यह सक्रिय होती है। सुषुम्ना नाड़ी का सक्रिय होना आध्यात्मिक जागरण और कुंडलिनी जागरण के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।
भगवान शिव कहते है: “हे पार्वती, तुम्हें स्वर विज्ञान के रहस्यों को जानना चाहिए। यह विज्ञान न केवल सांस और नासिका के स्वर के बारे में है, बल्कि जीवन की विविध गतिविधियों और कार्यों को समझने और नियंत्रित करने लिये भी आवश्यक है।”
देवी पार्वती पूछती है: “हे महादेव, कृपया मुझे स्वर विज्ञान के महत्व और उपयोग के बारे में विस्तार से बताएं।”
भगवान शिव कहते है: “हे पार्वती, जब बाईं नासिका सक्रिय होती है, तब इड़ा नाड़ी सक्रिय होती है। यह समय ध्यान, योग और मानसिक शांति के लिए उपयुक्त है। जब दाईं नासिका सक्रिय होती है, तब पिंगला नाड़ी सक्रिय होती है। यह समय शारीरिक गतिविधियों, कार्य और निर्णय लेने के लिए उपयुक्त है। जब दोनों नासिकाएँ समान रूप से सक्रिय होती हैं, तब सुषुम्ना नाड़ी सक्रिय होती है, और यह समय आध्यात्मिक साधना और कुंडलिनी जागरण के लिए सर्वोत्तम है।”